अगर आपके मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो सीमित पढ़ाई और संसाधनों के बावजूद भी बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है। सारण जिले के दरियापुर प्रखंड के खान पुर गांव के रणजीत सिंह ने यही कर दिखाया है। सिर्फ दसवीं तक पढ़े रंजीत ने जैविक खेती को अपनाकर न केवल खुद की पहचान बनाई बल्कि सैकड़ो किसानों के लिए उम्मीद भी बन गए हैं।
रणजीत सिंह खानपुर निवासी प्रभुनाथ सिंह के पुत्र हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में वह उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और पश्चिम बंगाल तक भटके। लेकिन बार-बार असफलताओं ने उनका हौसला तोड़ने की कोशिश की। मगर रंजीत ने हर नहीं मानी और गांव लौटकर तय किया की मेहनत की असली जमीन गांव की मिट्टी है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों से प्रेरणा और कृषि विभाग के सहयोग से उन्होंने जैविक खेती की राह चुनी।
शुरुआत मैं 2 साल तक संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान लागत, बाजार और तकनीकी की कई चुनौतियों का सामना करना पड़। लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई।लाल गोभी, शिमला मिर्च, जापानी केला, शलजम, करेला टमाटर और पपीता जैसी फैसले उन्होंने 3 एकड़ जमीन पर जैविक विधि से उगानी शुरू की। आज उनका खेती का मॉडल सैकड़ो किसानों के लिए प्रेरणा बन गया है।
रंजीत की हर महीने 4 से 5 लाख सबके की फसल बिक रही है और सालाना 6 से 7 लाख रुपए की शुद्ध आमदनी हो रही है। वह अपनी उपज को नजदीकी मंदिरों के अलावा पटना और हाजीपुर तक सप्लाई करते हैं।
गांव की मिट्टी में ही असली सोना छुपा है।
रंजीत का कहना है कि गांव के मिट्टी में ही असली सोना छुपा है। भरोसे और मेहनत से ही सपना पूरे हो सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जैविक खेती से सिर्फ कमाई ही नहीं बल्कि मिट्टी और पर्यावरण की सेहत भी बेहतर रहती है।
आइकॉन किसान बन चुके हैं। उनकी कहानी यह सिखाती है कि किस तरह गांव में रहकर भी सीमित संसाधनों में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। इनकी कहानी यह सिखाती है कि परिश्रम और दृढ़ निश्चय से कोई भी अपनी किस्मत से खुद लिख सकता है और दूसरों के लिए भी र सकता है।
सौर ऊर्जा से चलने वाला पंप और ऋण सहायता मिली।
उनकी सफलता में सरकारी सहयोग ने भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अनुदान पर ई रिक्शा, फल सब्जी पैकिंग के लिए झूले और सौर ऊर्जा से चलने वाला पंप और री सहायता मिली। इसके अलावा रंजीत को जैविक खेती के लिए गोवा, भगलपुर, समस्तीपुर, गुजरात के बड़ौदा पर प्रशिक्षण का अवसर भी मिला। वहां उन्हें सम्मानित भी किया गया। जिससे उनका आत्मविश्वास और बढ़ा। आज रंजीत की सफलता को देख कर आसपास के गांव के सैकड़ो लोग जैविक खेती की ओर अग्रसर हो चुके हैं।
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